यह सीकुमार भट्टाचार्जी के लिए है. और ब्लॉग के पुरनके पहचानियों के लिए. इसकी भी एक पुरानी रिकॉर्डिंग पहले कभी हुआ करती थी, जिसके लाड़ में सीकुमार नत्थी होकर बार-बार मिठाई की दुकान पहुंच जाया करते थे, और किसी को, ख़ासकर के अपनी पत्नी को, बताये बिना चुपचाप मीठा खाकर स्वस्थ हो आया करते थे.. पुरानी आदतें (पुराने इश्कों की ही तरह) छूटती कहां है, नहीं छूटती, जैसे इस अगस्त महीने में जाने क्या है कि मैं बार-बार पुरनके पोस्टों पर लौट-लौटकर चौंकता रहा हूं. ख़ैर, आप मुझे सुनने की जगह पॉडकास्ट ही सुनिये, पहले इसके साथ नत्थी था, जाने कैसा था, और जैसा भी था किर इंटरनेट के मायावी लोक में कहां हेराया, क्यों हेराया.. यह भी मज़ेदार है कि पुरानी चीज़ें बार-बार हेराकर फिर किन शक्लों में लौट भी आया करती हैं..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल { बुधवार}{21/08/2013} को
ReplyDeleteचाहत ही चाहत हो चारों ओर हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः3 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
hindiblogsamuh.blogspot.com
धन्यवाद।
ReplyDeleteफिर से सुने। फिर सुनेंगे।
दीख रहा है आप घुघनी खाने निकल गये, डाक्टर ने मिठाई रुकवाया रक्खा है. बहाना मत टटोलिये.
Deleteदेश सही ही जा रहा है, तब से आज तक। आई आई, बाई बाई, गालियां, मेडीकल इंश्योरेंस, भीड़ फिर भी उसमें बने रहने की चाहत। सब सही ही होगा। देश भी।
ReplyDeleteइसको पढ़ते हुये इसको सुनना अद्भुत है। विकट।
ReplyDeleteकमाल का पॉडकास्ट है प्रमोद जी. मुझे लगता है कि जो भी पॉडकास्ट कर सकता हो, अपनी पोस्ट का पॉडकास्ट लगायें, तो पाठक लेखक के भावों के साथ साथ चल सकता है.
ReplyDelete