tag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post154551531334833447..comments2023-11-02T19:59:11.734+05:30Comments on अज़दक: आप मुझे जानते हैं?..azdakhttp://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-27207377460436042162007-06-21T10:45:00.000+05:302007-06-21T10:45:00.000+05:30मैं आपको नहीं जानती.....न खुद को....किसी को भी नही...मैं आपको नहीं जानती.....न खुद को....किसी को भी नहीं....कुछ राय बनाती हूँ और वो व्यक्तित्व बदल जाता है.....आज अभी मैं जो हूँ.....शायद ही अगले पल हूँ....कभी मैं बदल जाती हूँ...कभी वो जगह जहाँ मैं खड़ी हूँ.....फिर भी मैं एक उम्मीद पालती हूँ....जिस तरह समय मुझे बदल रहा है...आपको भी बदल रहा होगा....जिस दूरी पर आप मुझसे आज मिले हैं कल भी मिलेंगे...सकपका जाती हूँ जब यकायक यह दूरी अलग हो जाती है....पर दूरियाँ बदलती रहती है....ना मैं अब जैसी कभी और होऊँगी...ना आप...कैसे कहूँ मैं आपको जानती हूँ।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/16964389992273176028noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-32031393552882877512007-06-11T15:01:00.000+05:302007-06-11T15:01:00.000+05:30हम कभी किसी को जान ही कब पाते हैं?अपने बारे मे जान...हम कभी किसी को जान ही कब पाते हैं?<BR/><BR/>अपने बारे मे जानने का वक्त नही, तो सामने जो है उसे कैसे जानेंगे? अगर जान ही जायेंगे तो उसमे मुझमे फर्क ही नही बचेगा, जब तक हम एक दुसरे को नही जानते है, तब तक ही दो हैं।<BR/><BR/>इसलिये किसी को जान पाना मुश्किल ही नही नामुमकिन हैं, ऐसा मुझे लगता है, पर व्यवहारिक भाषा मे तो हम एक दुसरे को जानते ही हैं, पर सिर्फ अपने नजरिये से ना कि आपके नजरिये से।<BR/><BR/>:)गरिमाhttps://www.blogger.com/profile/12713507798975161901noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-82224683363642419402007-06-09T17:40:00.000+05:302007-06-09T17:40:00.000+05:30जितना मुझे समझ है उसके अनुसार आपकी इस पोस्ट के सूत...जितना मुझे समझ है उसके अनुसार आपकी इस पोस्ट के सूत्र आपकी उस पोस्ट पर हुयी एक टिप्पणी से जुड़े हैं जिसमें आपने जीतेंन्द्र की कार का जिक्र करते हुये अपनी हसरत का बयान किया था। बाकी अपने को ही समझने में आदमी जिंदगी गुजार देता है दूसरे को क्या समझेगा! मोटा-मोटी आइडिया लग जाता है। बस्स! :)अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-60682907503631670762007-06-09T14:18:00.000+05:302007-06-09T14:18:00.000+05:30Kya kisi ko poori tarah samjhanaa mumkin hai?????....Kya kisi ko poori tarah samjhanaa mumkin hai?????.. mujhe lagta hai ye dunika ka sabse naamumkin kaam hai.. insaan kisi aur ko to kya .. shayad khud ko bhi poori tarah nahi jaanata.. jitna bhi jaanane ki koshish kijiye.. ye naa khatam hone wali khoj hai.. har baar kuchh naya milega .. jab bhi koshish kijiye... ek baar kahin suna tha "Milenge har ek Aadmie mein kai ek aadmi...jab bhi kisi ko dekhan doobara jaroor dekhna.." Kai saal pahle suna tha .. aaj tak nhai bhool payi.. aur yahi sach hai maanati hun...khud ke liye bhi aur auron ke liye bhiMonika (Manya)https://www.blogger.com/profile/02268500799521003069noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-10606340131059075812007-06-08T18:55:00.000+05:302007-06-08T18:55:00.000+05:30खुद को जानना ही जब इतना कठिन है तो दूसरो को कैसे ज...खुद को जानना ही जब इतना कठिन है तो दूसरो को कैसे जाने ..और फिर ऊर्जा भी क्यों लगायें जानने की..!! एक व्यक्ति को कई एंगिल से देखा,जाना और परखा जा सकता है ..और हर व्यक्ति अपनी अपनी समझ और रुचि के हिसाब से किसी को जानता है तो फिर आप इतना व्यथित हो लरबरायें नहीं बस करते हैं रहें जो आपको अच्छा लगे ..बिना ये सोचे कि किसने जाना,कैसे जाना,कितना जाना... यहां हम किसी व्यक्ति को परखते भी नहीं वरन उसके विचार को परखते हैं...काकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-61835256023010375122007-06-08T15:27:00.000+05:302007-06-08T15:27:00.000+05:30मानवी अंतर्कथाएं बहुत गहरी हैं। लेकिन हर कोई इतनी ...मानवी अंतर्कथाएं बहुत गहरी हैं। लेकिन हर कोई इतनी परतों में, इतने परदों में घिरा है कि बाहर झांकने पर भी दूसरों को अपनी बनाई सीमाओं में ही देख पाता है। मुक्तिबोध ने बहुत पहले दरमियानी फासलों की बात की थी। मुझे लगता है कि हम अपने समय को समझ लें तो औरों से लेकर खुद को भी समझ सकते हैं।अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-49744802877469112582007-06-08T14:17:00.000+05:302007-06-08T14:17:00.000+05:30आप मुझे जानते हैं जैसे अस्तित्ववादी सवाल उठाने के ...आप मुझे जानते हैं जैसे अस्तित्ववादी सवाल उठाने के बाद आप मनुष्यता के रूढ अर्थों की बात करें ये कुछ जमता नहीं. वैसे कौन किसको जानता है इस दुनिया में. सब कुछ पारे की तरह तरल है यहां. भले ही हम सबकुछ स्थाई होने का भ्रम पाल लें. सेल्फ पिटी अकेले में तो अच्छी है सार्वजनिक तौर पर शायद नहीं. वैसे जो आपने लिखा है वैसी ही कुछ यंत्रणा में भी झेलना हूं. यंत्रणा से असहमति नहीं. लेकिन जिगर के ज़ख्मों को चौराहे पर दिखाने पर लोग आपको या मुझे भी भिखारी से ज़्यादा कुछ नहीं समझ सकते. अपने-अपने खोल में इतने मस्त हैं लोग कि उन्हें ज़्यादा कुछ जानने की ज़रूरत ही क्या है. सबकी परिभाषित किस्म की जिंदगी और नैतिकताएं इतनी बलवान हैं कि वर्चुवल डायलॉग भले ही संभव हो यथार्थ यहां किसी धर्म, परिवार या स्थापित एथिक्स की चाहरदीवारी में ही आपको कैद मिलेगा. इधर-उधर की हांकने के लिए माफ कीजिए. बाक़ी आप समझ गए होंगे, इसलिए दिमाग के दरवाजे अभी बंद हैं. कुछ दिनों तक हिमालय पर तपस्या करने जा रहा हूं लौटकर आपसे बात करूंगा.Bhupenhttps://www.blogger.com/profile/05878017724167078478noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-62313939879417146652007-06-08T12:45:00.000+05:302007-06-08T12:45:00.000+05:30बहुत सही!!!बहुत सही!!!Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-36944039743283190392007-06-08T10:53:00.000+05:302007-06-08T10:53:00.000+05:30क्या आप मुझे जानते हैं के बाद अब क्या आप अपने आप क...क्या आप मुझे जानते हैं के बाद अब क्या आप अपने आप को जानते हैं भी लिख डालिये । खुद अपने आप के बारे में राय बनाने की कम हडबडी नहीं रहती है क्या ?Pratyakshahttps://www.blogger.com/profile/10828701891865287201noreply@blogger.com