tag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post4368683020181984499..comments2023-11-02T19:59:11.734+05:30Comments on अज़दक: चोट, गहराई व व्यावहारिकताazdakhttp://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-80772166893831642352007-06-09T15:10:00.000+05:302007-06-09T15:10:00.000+05:30प्रमोद जी आपको राय तो नहॊ दे सकता पर अपन तो एक पुर...प्रमोद जी आपको राय तो नहॊ दे सकता पर अपन तो एक पुरानी कहानी के प्रेमी है लगे हाथो आपको भी सुनाये देते है<BR/>नदी मे एक साधु बार बार एक बिच्छू को उठा कर हाथ पर रख रहा था,बिच्छू बार बार काट कर बहाव मे गिर जाता, न साधु मानता था ना बिच्छू<BR/>आखिर हम ने पूछा छोड क्यो नही देते महाराज जाने दो<BR/>जवाब मिला उसका स्वभाव है डंक मारना,और मेरा उसे बचाना<BR/>वो अपना काम कर रहा है मै अपना,मै उसके चक्कर मे अपना स्वभाव कैसे बदल लूArun Arorahttps://www.blogger.com/profile/14008981410776905608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-6668167318130985462007-06-09T12:46:00.000+05:302007-06-09T12:46:00.000+05:30आप को ज्ञान या सलाह देने जितनी समझ नहीं है अपनी......आप को ज्ञान या सलाह देने जितनी समझ नहीं है अपनी...पर जितनी अनुभव जन्य समझ है उसके ही द्वारा कहता हूँ कि इस प्रकार की परिस्थितियां कभी ना कभी सभी के जीवन में आती हैं ..जब खुद को पहचानने के लिये हम दूसरों की नजर से खुद को देखते हैं ..दूसरे हमारे बारे में क्या सोचते हैं या होंगे ये प्रश्न तब उत्पन्न होता है जब हम ये सोचते हैं कि "कौन हूँ मैं ?" ..ये जानने के लिये भी हम दूसरों से नहीं पूछ्ते कि वो क्या सोच रहे हैं खुद इस बात का निर्धारण करने लगते हैं कि वो क्या सोचते होंगे.. इस प्रश्न का उत्तर हम बाहर देखने की बजाय अपने अन्दर ही खोजें तो शायद मिल भी जाय लेकिन हम ऎसा तो करते ही नहीं हैं .. इस तलाश में बाहर जाते हैं कि शायद कोई उत्तर मिल जाये पर नहीं मिलता.. फिर या तो हम चकाचोंध में मूल प्रश्न को भूल जाते हैं या फिर निराश होकर बैठ जाते हैं... <B>सुख की प्राप्ति होने पर दुखी होने के कारणों की पड़ताल करना कोई जरूरी नहीं समझता..</B> इसलिये मैं तो यही कहुंगा कि शांत चित्त होकर अपने अन्दर झांके तो आप पायेंगे कि सब कुछ कितना सुन्दर है और जो नहीं है उसे सुन्दर बनाया जा सकता है ... <B> असुन्दर से सुन्दर बनने की यात्रा हमारे मन से प्रारम्भ होती है... </B><BR/><BR/>" जाकी रही भावना जैसी ,प्रभु मूरत देखी तिन्ह तैसी..."काकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-74721259908459693832007-06-09T12:39:00.000+05:302007-06-09T12:39:00.000+05:30प्रमोदजीकोई खुद को ही कहां जान सकता है। मतलब यह बा...प्रमोदजी<BR/>कोई खुद को ही कहां जान सकता है। मतलब यह बात आध्यात्मिक स्तर की नहीं कह रहा हूं। कई बार कई स्थितियों में हम खुद से एक नयी पहचान करते हैं। अपने ही को एक सिलसिले में देखें, तो एक के बाद एक नये व्यक्तित्व उभर कर आते हैं। निदा फाजली साहब के इस शेर में बहुत कुछ कहा गया है-हर आदमी में होते हैं, दसबीस आदमी<BR/>जिसको भी देखना, कई बार देखना<BR/>तो भईया एक एक बीस बीस को लिये घूम रहा है। कहां तक सबसे मुलाकात करो। जितनी हो जाये, बहुत है। न हो, तो भी ठीक है। जिंदगी छोटी है, बहूतों से मुलाकात की, तो मुलाकाती भर होकर रह जायेंगे। नहीं। वैसे इस विषय पर और चिंतन की जरुरत है। मैं धांसू बुद्धिजीवी हूं, सो पहले बोल देता हूं, फिर सोचता हूं। बाद में सोचकर बताऊंगा।ALOK PURANIKhttps://www.blogger.com/profile/09657629694844170136noreply@blogger.com