tag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post49272514583313723..comments2023-11-02T19:59:11.734+05:30Comments on अज़दक: व्हॉट ए पज़ल अ स्त्री इज़!..azdakhttp://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-48752228612711418302008-02-08T17:44:00.000+05:302008-02-08T17:44:00.000+05:30स्त्री एक पज़लिंग, अनरेलायबल मिस्ट्री है?बाबा :...स्त्री एक पज़लिंग, अनरेलायबल मिस्ट्री है?<BR/><BR/>बाबा :) अपनी आज की पोस्ट में यही बात उठाई है ।<BR/><BR/>क्यो स्त्री की यह छवि बनाई गयी है?सबकांशस के भय ? आपका चिंतन जारी रहे ।<BR/>एक मज़ेदार पोस्ट !सुजाताhttps://www.blogger.com/profile/12373406106529122059noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-15879450558557924372008-02-08T15:08:00.000+05:302008-02-08T15:08:00.000+05:30कैसी सुंदर ,सरल, सारगर्भित बानी है प्रत्यक्षा की-ग...कैसी सुंदर ,सरल, सारगर्भित बानी है प्रत्यक्षा की-<BR/>गूढ़ार्थ को महाराज हाईलाईट कर दिया कीजियेअजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-61605370475469181142008-02-08T13:56:00.000+05:302008-02-08T13:56:00.000+05:30कितना सुंदर क्लू दिया है सोचने का। कोई भी रचना तार...कितना सुंदर क्लू दिया है सोचने का। कोई भी रचना तार्किक से ज्यादा रहस्यमय होती है। संभवतः स्त्री भी पुरुष की तुलना में उतनी ही अतार्किक, उतनी ही रहस्यमय हुआ करती है, जितनी वह संतान रचना के करीब होती है। दूरदर्शन पर काफी पहले एक टेलीड्रामा देखा था- 'पिता'। यह किसी पश्चिमी लेखक की कृति पर आधारित था और उसमें इसी थीम को इक्सप्लोर करने का प्रयास किया गया था। मेरी यह पुरानी मान्यता है कि जीवन के नाटक की समझ के मामले में व्यास अद्वितीय हैं। उनके यहां कुछ भी पारंपरिक, कुछ भी सुविधाजनक नहीं है- इस मामले में वे और उनका महाभारत कितने 'अभारतीय' हैं!चंद्रभूषणhttps://www.blogger.com/profile/11191795645421335349noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-13366250820763669092008-02-08T12:20:00.000+05:302008-02-08T12:20:00.000+05:30"या वह हमें सुख के सहजलोक से बाहर खींचकर उलझाव के ..."या वह हमें सुख के सहजलोक से बाहर खींचकर उलझाव के एक बड़े जटिल कैनवास के लिए तैयार कर रहा है?.."<BR/><BR/>कैनवस तो जटिल हमेशा से था ..तब । अब भी है । गूढ़ार्थ को महाराज हाईलाईट कर दिया कीजिये । सुबह सुबह की अफरा तफरी में हाईलाईटेड पर नज़र मार लेंगे , इंस्टैंट ज्ञान प्राप्त कर लेंगे ।Pratyakshahttps://www.blogger.com/profile/10828701891865287201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-45776374132730325142008-02-08T11:12:00.000+05:302008-02-08T11:12:00.000+05:30पतित और पावन के दोनों लोक माप लिए हैं प्रभु!अब तीस...पतित और पावन के दोनों लोक माप लिए हैं प्रभु!अब तीसरा डग मेरे मस्तक पर रखिए और शांत हूजिए .<BR/><BR/>रही बात हितैषी की तो उनकी ऐसी की तैसी . जो कष्ट और बेचैनी का बाइस बने वो काहे का हितैषी .Priyankarhttps://www.blogger.com/profile/13984252244243621337noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-51123553918743336172008-02-08T10:41:00.000+05:302008-02-08T10:41:00.000+05:30वाकई शांतनु को दिया गया गंगा का जवाब बड़ा आधुनिक क...वाकई शांतनु को दिया गया गंगा का जवाब बड़ा आधुनिक किस्म का था।अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.com