tag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post553559812087318993..comments2023-11-02T19:59:11.734+05:30Comments on अज़दक: फालतू की बतकहीazdakhttp://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-47552643474867730012007-03-16T12:34:00.000+05:302007-03-16T12:34:00.000+05:30शानदार। इश्टाइल निखरती जा रही है। पढ़ने में मजा आत...शानदार। इश्टाइल निखरती जा रही है। पढ़ने में मजा आता है।<BR/>पहाड़ों के पार इच्छाओं का कल्पित रक्ताभ सूरज जिनको बहुत मुदित करता है, उनकी छोटी-छोटी चाहतें बहुत मायने रखती हैं।अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-42611955607206470612007-03-16T10:48:00.000+05:302007-03-16T10:48:00.000+05:30इंतजार में हैं कुछ लोग जो हैं फालतूकुछ तो है एकदम ...इंतजार में हैं कुछ लोग जो हैं फालतू<BR/>कुछ तो है एकदम पालतू<BR/><BR/>अच्छा है जनाब <BR/>शोक से भर आता है उनका गला. सुदूर, सुदीर्घ, प्रवंचना, अन्वेषण, विडंबना, विलोम जैसे शब्दों से लैस वे नई ऊर्जा से लौटते हैं फालतू की बतकही में. कभी लुंगी, कभी लंगोट फिर गहरी मंत्रणा के बाद वे पैर डालते हैं पतलून में. हर्ष से करते हैं घोषणा इतना सार्थक संवाद पहले कभी नहीं हुआ था फालतू की बतकही का. <BR/><BR/>फालतू की बतकही, कहीं से कही ले जा सकती है जनाब लगे रहो, फालतू बैठे और क्या कर सकते हो पीटो कीबौर्ड.योगेश समदर्शीhttps://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-31042496649710076182007-03-16T09:56:00.000+05:302007-03-16T09:56:00.000+05:30सही है प्रमोद भाई। फालतू की बतकही। ब्लॉग और किताब...सही है प्रमोद भाई। फालतू की बतकही। ब्लॉग और किताब क्या, जल्द ही इस पर बड़े-बड़े ग्रंथ लिखे जाएंगे, विश्वविद्यालयों मे शोध होंगे।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-1818461342962771282007-03-16T08:24:00.000+05:302007-03-16T08:24:00.000+05:30आपने फालतू की बतकहियों को सम्मान दिला कर बहुत अच्छ...आपने फालतू की बतकहियों को सम्मान दिला कर बहुत अच्छा किया । फालतू की बतकही गंभीर लोगों की चाल है । गंभीर कहलाने के लिए वो अपने खिलाफ फालतू को खड़ा करते हैं । आप उलट दीजिए । कहिए फालतू गंभीर है और गंभीर फालतू । बाकी हम तो हैं ही । मैंदान में । साथ देने के लिए । रवीश कुमारAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-78039622832629439712007-03-16T07:00:00.000+05:302007-03-16T07:00:00.000+05:30अभी जबकि चेतना अपने झुट्पुटे में उनींदे साथियों के...अभी जबकि चेतना अपने झुट्पुटे में उनींदे साथियों के साथ आँख्मिचौली खेल रही है..इस दौर का सबसे सशक्त सबसे राजनीतिक और सबसे डिक्लासता का एह्सास कराने वाला प्रवंचनात्मक लेख...अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.com