tag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post6579168220649664102..comments2023-11-02T19:59:11.734+05:30Comments on अज़दक: कैसी तो छूटी बेहया शराब..azdakhttp://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-85092387734389537312009-10-15T03:55:58.768+05:302009-10-15T03:55:58.768+05:30sun liyaa!sun liyaa!स्वप्नदर्शीhttps://www.blogger.com/profile/15273098014066821195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-55334742989655436652009-10-13T18:43:38.985+05:302009-10-13T18:43:38.985+05:30आपके ब्लॉग पर आकर एक सबसे अलग अंदाज पढने को मिलता ...आपके ब्लॉग पर आकर एक सबसे अलग अंदाज पढने को मिलता है ...<br />कभी सुना था, ठीक है, फिर एक जीवन भी तो है की पगडंडियों में बहका-भटका अपने जोड़-घटाव दुरुस्त करता रहता है, और वे सारे महीन सुरभरे, रागभरे गहरे क्षण कहीं किसी कोने छूटे, बिसरा जाते हैं, महीनों निकल जाते हैं. महीनों महीनों महीने निकल जाते हैं! और एक दिन.. और एक दिन कोई एक बेमतलब का बहाना बनता है, कोई बचकानी-सी वज़ह.. रुखे हाथ और उखड़ा अनमना सूखा मन संगीत की त्वचा से टकराता है....<br />शब्दों से खेलना कोई आपसे सीखे ...Renu goelhttps://www.blogger.com/profile/13517735056774877294noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-43005726936063831162009-10-13T13:55:46.730+05:302009-10-13T13:55:46.730+05:30बहुत खूब लिख दिया। अब गीत सुनने जा रहा हूं जी। आपक...बहुत खूब लिख दिया। अब गीत सुनने जा रहा हूं जी। आपके ब्लॉग पर पहली बार आया हूं। और अच्छा लगा।Kulwant Happyhttps://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-22226979697875176322009-10-13T11:49:28.934+05:302009-10-13T11:49:28.934+05:30सच! कभी - कभी तो लगता है जैसे किसी लोकप्रिय आर. जे...सच! कभी - कभी तो लगता है जैसे किसी लोकप्रिय आर. जे. का प्रोग्राम सुन रहा हूँ... देर रात... <br /><br /><br />"""""फिर एक जीवन भी तो है की पगडंडियों में बहका-भटका अपने जोड़-घटाव दुरुस्त करता रहता है, और वे सारे महीन सुरभरे, रागहरे गहरे क्षण कहीं किसी कोने छूटे, बिसरा जाते हैं, महीनों निकल जाते हैं. महीनों महीनों महीने निकल जाते हैं! और एक दिन.. और एक दिन कोई एक बेमतलब का बहाना बनता है, कोई बचकानी-सी वज़ह.. रुखे हाथ और उखड़ा अनमना सूखा मन संगीत की त्वचा से टकराता है.. जैसे नाउम्मीदी के डेस्पेयर में अरसे बाद अचानक पहचानी कपड़ों की झिलमिल के पार वह गाल छू गए हों, वह नज़र की मोहब्बत और मदहोश दीवानापन छू गया हो जिसके बारे में जाने मन ने किन गफलत और असमंजस के क्षणों में फ़ैसला कर लिया था कि भई, यह कहानी तो खत्म हुई, ग़म और भी हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा एटसेट्रा, एटसेट्रा.. """""<br /><br />याद रहने वाली लाइन... आहा ! आनंद! घोर आनंद...सागरhttps://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-72109096608868218272009-10-12T20:23:20.788+05:302009-10-12T20:23:20.788+05:30आप एक ज्ञान का बड़ा समंदर हो सर जी......बहुते बड़ा...आप एक ज्ञान का बड़ा समंदर हो सर जी......बहुते बड़ा ....डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-7340488691658713842009-10-12T15:50:17.453+05:302009-10-12T15:50:17.453+05:30ऑफिस में हूँ तो गाना तो सुन नहीं पाउँगा.. पर आपके ...ऑफिस में हूँ तो गाना तो सुन नहीं पाउँगा.. पर आपके शब्दों की झंकार सुन पा रहा हूँ.. यकीनन इसका माधुर्य कुछ जुदा है..कुशhttps://www.blogger.com/profile/04654390193678034280noreply@blogger.com