tag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post7126543482699631763..comments2023-11-02T19:59:11.734+05:30Comments on अज़दक: सपने से बाहरazdakhttp://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-31371065320878447482009-12-05T12:55:59.234+05:302009-12-05T12:55:59.234+05:30समाज कितना तो चला गया है
भले ही दिशाहीन चला तो है...समाज कितना तो चला गया है <br />भले ही दिशाहीन चला तो है, गतिमान वस्तु हमेशा चलती है. <br /><br />अब समाज जो हे टायर तो है नहीं, कि कोई बालक उसे डंडा मरता हुआ ले दौड़े.<br /><br />हाँ लगाने वालों ने उस टायर को गाड़ी में लगाकर अपना-अपना फायदा ज़रूर उठा लिया है आराम से ज़िंदगी बसर करने के लिए.अनिल कान्तhttps://www.blogger.com/profile/12193317881098358725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-22092934699959722182009-12-05T11:52:40.373+05:302009-12-05T11:52:40.373+05:30यह कविता अभी कुछ दिनों पहले उनकी प्रतिनिधि कविताये...यह कविता अभी कुछ दिनों पहले उनकी प्रतिनिधि कवितायेँ में पढ़ी है... पर इन दिनों आप भी कविता में रस लेते दिख रहे हैं सर...सागरhttps://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.com