tag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post7444711750122254904..comments2023-11-02T19:59:11.734+05:30Comments on अज़दक: देश कहां है? उम्मीद..?azdakhttp://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-84658924440812189622008-12-05T10:32:00.000+05:302008-12-05T10:32:00.000+05:30जरूरत है रोष से निर्माण की तब उसे पाकिस्तान के विर...जरूरत है रोष से निर्माण की तब उसे पाकिस्तान के विरूद्ध कर (सही होते हुए भी) बदमाशी की जा रही है.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-17131763308538977702008-12-05T10:11:00.000+05:302008-12-05T10:11:00.000+05:30बिल्कुल सही कह रहे है आप। ये चिंताएं हमारी भी है।बिल्कुल सही कह रहे है आप। ये चिंताएं हमारी भी है।सुशील छौक्कर https://www.blogger.com/profile/15272642681409272670noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-55047598591271427852008-12-05T08:28:00.000+05:302008-12-05T08:28:00.000+05:30@विष्णुजी,प्रतिक्रिया का शुक्रिया. लेकिन लगता है ...@विष्णुजी,<BR/>प्रतिक्रिया का शुक्रिया. लेकिन लगता है एक छोटे कन्फ़्यूज़न से- यही कि मैं मुंबईनिवासी हूं, दिल्ली व 'जनसत्ता' का सुधीश पचौरी नहीं- आपका रोश किन्हीं दूसरे रास्तों निकल गया है. दिल्लीवालों को तो धर-धर व भर-भरके लतियाने की ज़रूरत है ही. कहिये तो आज ही टिकट कटवा लें..azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-89743846364125178232008-12-05T07:44:00.000+05:302008-12-05T07:44:00.000+05:30प्रमोदजी,'जनसत्ता' के रविवारी में आपको नियमित रूप...प्रमोदजी,<BR/>'जनसत्ता' के रविवारी में आपको नियमित रूप से पढता हूं, उत्कण्ठित और प्रतीक्षारत रहकर ।<BR/>आपकी चिन्ताओं से भला कौन असहमत होगा ? लेकिन आप और आप जैसे तमाम कलमकारों से हम लोग बहुत छोटी-छोटी अपेक्षाएं रखते हैं और अनुगमन करने को ललकते रहते हैं ।<BR/>छोटी जगह पर रहने वाला बडी जोखित उठाता है और बडी जगह पर रहने वाला, छोटी जगहोंवालों की उठाई जेखिम के 'रिटर्न्स एंजाय' करता है ।<BR/>जो-जो चिन्ताएं आपने जताईं हैं, उनके शिल्पकार दिल्ली में ही बिराजते हैं । दिल्ली के तमाम कलमकार उन्हें और उनके 'करिश्मों' को 'जानते-पहचानते' हैं । वे सब 'संज्ञाएं' हैं लेकिन जब भी उन्हें चिह्नित करने का अवसर आता है तब उन तमाम संज्ञाओं को सर्वनामों में बदल दिया जाता है और 'दो कौडी के नेताओं में नायकत्व की खोज' को लेकर चिन्ता जताई जाती है ।<BR/>जिस राजनीतिक गोलबन्दी की स्क्रिप्ट लिखे जाने को लेकर आप चिन्तित हैं, वह तो पहले ही दिन से लिखी हुई और सब उसे केवल दुहरा रहे हैं । <BR/>यह बिलकुल सच है कि 'ज्यादा वक्त, देश छुपा ही रहता है' और इसीलिए जब आप 'दिल्ली चलानेवालों की आंखों में आंख डालकर देखना बन्द मत करना' वाला सामयिक परामर्श देते हैं तो राहत ही मिलती है लेकिन यह शुरुआत तो दिल्ली से ही करनी पडेगी ।<BR/>दिल्लीवाले 'संज्ञाओं' से लाभान्वित होते हैं और 'सर्वनामों' को गरियाकर/लतियाकर मसीहा बनते हैं ।<BR/>मुझ जैसे तमाम लोग, आप जैसों से बडी उम्मीदें लिए हुए हैं । सच मानिए, खुद से अधिक विश्वास आप जैसों पर है । मुझे नहीं पता कि मेरे इस लिखे का क्या अर्थ निकलेगा या निकाला जाएगा लेकिन सच मानिए, आप लोग यदि संज्ञाओं को चिह्नित कर दिल्ली से कहेंगे कि आप लोगों ने फलां-फलां संज्ञा की आंखों में अंगुली गडा दी है तो यकीन मानिए, आपके पीछे कारवां बन जाएगा ।<BR/>यदि ऐसा नहीं हो पाता है तो सारा देश भी संज्ञाओं से अपने स्वार्थ सिध्द करता रहेगा और सर्वनामों को शब्दों से लतियाकर अपनी जिम्मेदारी पूरी करने का पाखण्ड करता रहेगा और तब देश अधिक जर्जर होगा-जो आपकी आधारभूत चिन्ता है ।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.com