tag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post7494132236865825818..comments2023-11-02T19:59:11.734+05:30Comments on अज़दक: लीद और मस्तियों के बारे में..azdakhttp://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-32522060590613198842008-05-24T16:07:00.000+05:302008-05-24T16:07:00.000+05:30ऐसे मौके पर आपने धैर्य का परिचय दिया है, भाषा भी स...ऐसे मौके पर आपने धैर्य का परिचय दिया है, भाषा भी संतुलित है, यहां बोधी जी ने अपना परिचय देने में जल्दी कर दी है क्यौकि शुरूआत बोधि ने की है,पर भाषा में आपके सामने बोधि मार खाते लग रहे हैं....लगता नहीं कि बोधि कवि भी है? अब साथी ने आलू चना बेचना शुरू कर दिया है...ऐसा लिख कर अपना बाज़ार तलाश रहे हैं और आप लोग जवाब पे जवाब लिखे जा रहे हैं देखिये ना कवि की कविता पर इतनी चर्चा हो रही होती तो तो हिन्दी के पठको को वाकई अच्छा लगता ......मेरा मन इन्ही सब बातों से थोड़ा खिन्न है सो मैने ऐसे अवसर पर अपनी ठुमरी पर कुछ विशेष विशेष चढ़्या है ज़रा सुन लीजियेगा भाई लोग ......VIMAL VERMAhttps://www.blogger.com/profile/13683741615028253101noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-92198548498140448592008-05-24T14:11:00.000+05:302008-05-24T14:11:00.000+05:30@ haulat....and quite masculine attitude, too. isn...@ haulat<BR/>....and quite masculine attitude, too. isn't? <BR/>never expect musu-musu type of feminism from me.Nandinihttps://www.blogger.com/profile/11132775455271584623noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-19959415519067201302008-05-23T20:26:00.000+05:302008-05-23T20:26:00.000+05:30अहा, आहो.. वाह वाह, वाहो..क्या बात है.. अनाम महिला...अहा, आहो.. वाह वाह, वाहो..<BR/><BR/>क्या बात है.. अनाम महिला.. कम से कम अपने को सामने लाने कि हिम्मत तो होनी ही चाहिये.. वैसे मैं ब्लौग कि दुनिया में नया हूं और लोगों को बस ब्लौगवाणी और चिट्ठाजगत के द्वारा जानता हूं.. सो अगर कोई पुरानी तकरार चल रही हो तो बता दें मैं क्षमा मांगकर यहां से भाग जाऊंगा.. <BR/><BR/>हा हा हा(इसे अट्टहास या जो कुछ भी समझे)..A mad guyhttps://www.blogger.com/profile/15091277528361121473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-36209425463039122102008-05-23T18:57:00.000+05:302008-05-23T18:57:00.000+05:30Nandini's language is quite masculine one .Nandini's language is quite masculine one .Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/16877603929377015696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-33198393884269822682008-05-23T16:45:00.001+05:302008-05-23T16:45:00.001+05:30@सुदीप सुजान जी,और जहाँ तक मुझे याद है कि बिना नाम...@सुदीप सुजान जी,<BR/>और जहाँ तक मुझे याद है कि बिना नाम लिये भी प्रत्यक्षा के पोस्ट की लाईनों को रेफर करके एक एक बात कही गई। कविवर न सिर्फ असंयत घटिया भाषा का प्रयोग कर रहे हैं बलिक जेनरल की आड़ में स्पेसिफिक अटैक करने का खेल भी रच रहे हैं। यहाँ बालकों की भीड़ नहीं जुटी है सुदीप साहब कि किसी को कुछ समझ न आये।<BR/>एक साहित्येतर स्त्रीAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-90684055833111184122008-05-23T16:45:00.000+05:302008-05-23T16:45:00.000+05:30पेट साफ़ रखने के पक्ष में कुछ स्ट्रेट सुझाव.. ना ...<A HREF="http://azdak.blogspot.com/2007/11/blog-post.html" REL="nofollow"> पेट साफ़ रखने के पक्ष में कुछ स्ट्रेट सुझाव.. </A><BR/><BR/>ना पढ़ा हो तो पढ़ लें.काकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-76930967622249263912008-05-23T16:20:00.000+05:302008-05-23T16:20:00.000+05:30जहां तक मुझे याद है उन्होंने किसी का नाम लेकर कुछ ...जहां तक मुझे याद है उन्होंने किसी का नाम लेकर कुछ नहीं कहा था.. मगर फिर भी आप उबाल खा रहे हैं.. कहीं ऐसा तो नहीं की चोर की दाढ़ी में तिनका..Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/04892601164540115504noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-52384659862065224782008-05-23T16:10:00.000+05:302008-05-23T16:10:00.000+05:30अजदक पिटों को गुस्सा क्यों आता है. शांत कलमधारी भी...अजदक पिटों को गुस्सा क्यों आता है. <BR/><BR/>शांत कलमधारी भीम शांत. <BR/>कलाकंद वाली पोस्ट भूले नहीं है अभी तक आपकी.काकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-52109002157978610482008-05-23T14:58:00.000+05:302008-05-23T14:58:00.000+05:30हमने बोधिसत्व और प्रत्यक्षा दोनों के लिखे पर टीप द...हमने बोधिसत्व और प्रत्यक्षा दोनों के लिखे पर टीप दी थी . <BR/><BR/>पहली बात तो यह कि हम चिट्ठाकारों को सिर्फ़ चिट्ठाकार मानते हैं और उनमें विभाजन-वर्गीकरण नहीं करते . दूसरा यह कि कहीं न कहीं यह भी मानते रहे हैं कि साहित्य/साहित्यकार और आम पाठक के बीच एक दूरी आ गई है,जिस पर बात होनी चाहिए . पर इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि साहित्यकार लोकप्रिय होने के लिए छिछला लिखने लगे .<BR/><BR/>कुछ साहित्यकारों-पत्रकारों के इधर -- इस ब्लॉग के लोकतंत्र में -- आने के बावजूद यह अलग विधा है . इसके अलग लिक्खाड़ हैं, सरल लिक्खाड़ हैं,वर्तनी-लिंग का कोई नियम न मानने वाले लिक्खाड़ हैं और कठोर साहित्यिक मापदंड से किंचित औसत लिक्खाड़ भी हो सकते हैं,पर उनकी कैप्टिव रीडरशिप -- उनकी फ़ैन फ़ॉलोविंग -- है इससे इन्कार नहीं किया जा सकता . भले ही वह लिंकिंग-सौजन्य के तहत क्यों न हो (बकलम ज्ञानजी) . <BR/><BR/>रही बात प्रत्यक्षा से पूरी तरह सहमत होने की तो वहां असहमति की कोई गुंजाइश ही नहीं दिख रही थी,वरना अपन तो तैयार बैठे रहते हैं असहमत होने के लिए . <BR/><BR/>'अनेक नावों में अनेक बार' धर्मी अनूप सुकुल हमें अपने जैसा मुहंदेखी कहने वाला मानकर 'मौज' की अवस्था में हैं . पर हम वैसा हो सकूंगा इसमें बहुतै डाउट है .बाबू मोशाय! ओइ रकम 'जोग्गता' कोथाय पाबो ? <BR/><BR/>हम वहीं हूं जहां था . उत्तरायण से दक्षिणायन कतई नहीं होऊंगा . शांत हूजिए प्रभु! <BR/><BR/>काहे टेंशनियाते हैं . आप एकै पीस हैं . यहां भी और वहां भी . ब्लॉग में भी अउर ससुरे साहित्त-वाहित्त में भी . मिसिर जी से दुखी न हूजिए और सुकुल जी से थोड़ी मौज उधार लीजिए .Priyankarhttps://www.blogger.com/profile/13984252244243621337noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-19176667983277691952008-05-23T14:28:00.000+05:302008-05-23T14:28:00.000+05:30ये कहा पतनशील साहित्य जैसी शानदार पगडंडी को छोडकर ...ये कहा पतनशील साहित्य जैसी शानदार पगडंडी को छोडकर पडे लिखो की चिरकुटी बहस मे पड रहे है जहा टाग खिचाई महोत्सव चलते ही रहते है :)Arun Arorahttps://www.blogger.com/profile/14008981410776905608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-10190578498194670532008-05-23T14:03:00.000+05:302008-05-23T14:03:00.000+05:30सही बात है... हमारी नादानी और नासमझी ही है... लेकि...सही बात है... हमारी नादानी और नासमझी ही है... लेकिन अभी नया ज्ञानोदय में यह छप जाए... कि बोधि कवि नहीं सच में उजबक ही हैं.. तो ये सारी विनम्रता फा फूं फा फूं फैजाबाद... आं ऊं आं ऊं अलहाबाद हो जाएगी... चिंचियाने लगेंगे कि हमें कौन साहित्य से बाहर कर सकता है... हमको तो नामवर जी साटीफिकिट दिए हैं... बोधि अपने कविता संग्रहों को कौड़ा बनाकर ताप क्यों नहीं लेते... यही बात कहनी है... तब बाबा तुलसी बिसरा जाएंगे... अरे गीतकार समीर की तरह सनम सनम लिखिए... माल भकोसिए और सुत जाइए... काहें सूखी लीद को लोबान समझ धुआं फैला रहे हैं महाकवि...Nandinihttps://www.blogger.com/profile/11132775455271584623noreply@blogger.com