tag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post7675324233078687313..comments2023-11-02T19:59:11.734+05:30Comments on अज़दक: आइए, मौज लें.. हेंहेंहें..azdakhttp://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-40326422527559396272008-02-04T13:38:00.000+05:302008-02-04T13:38:00.000+05:30त्रेता में परशुराम ने इक्कीस बार पृथ्वी अहंकारी और...त्रेता में परशुराम ने इक्कीस बार पृथ्वी अहंकारी और युयुत्सु क्षत्रियों से हीन कर दी थी . इस बार कलियुग में यह दायित्व परशुप्रमोद ने लिया है.कम से कम एक बार इन मर्दवादी-मौजवादी(यूपी-प्रयोग की सफलता के मद्देनज़र मनुवादी चिप्पा अभी कारगर नहीं है) द्विजों को ब्लॉग की पृथ्वी से बुहार देना है . खाए-अघाए-डकार लेते,तोंद पर हाथ फिराते-जनेऊ से कमर खुजाते ये चुटियाधारी हर गंभीर बात में मौज ढूंढते हैं . यही सीखा है शास्त्रों से ? हर समय हेंहेंहें..ठेंठेंठें..Priyankarhttps://www.blogger.com/profile/13984252244243621337noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-609459766845751232008-02-03T01:38:00.000+05:302008-02-03T01:38:00.000+05:30हँसी ठेंठे वाले आपके नतीजे से तो सहमत हूँ प्रमोद भ...हँसी ठेंठे वाले आपके नतीजे से तो सहमत हूँ प्रमोद भाई, बाकी इस पूरे ही प्रसंग से अनजान हूं , जानना भी नहीं चाहता। ब्लाग हो या कोई और मंच पढ़े लिखे , संभ्रांत लोग ऐसे अवसर नहीं छोड़ते है जिनका उल्लेख आपने किया है। कई लोग आपराधिक मौन धारण कर लेते हैं , वह भी ग़लत है। <BR/>दो-दो पुरस्कार-सम्मान प्रसंग देख चुका हूं। वहां भी यही सब देख , बुरा लगा। तरकश की साइट पर एकतरफ पुरस्कारों की घोषणा दूसरी तरफ अपमान की हदें पार करती ठिलुआई नैतिक असंगततता लग रही थी। मैने इस पर ऐतराज भी किया। घटिया चीज़ का विरोध होना चाहिए था या उसे रोकना था। कही का नज़ला कहीं गिराना। <BR/>बहरहाल जो समाज में है , वही यहां भी दिखेगा। अलबत्ता लोग ज़रूर कुछ सुलझे हुए हैं मगर....दिन को होली रात दिवाली की तुलना में <BR/>उत्सवप्रियः हि मनुश्याणाम् वाली बात कहीं ज्यादा सात्विकता से अपनी बात कहती है।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-70528079047150857762008-02-03T00:22:00.000+05:302008-02-03T00:22:00.000+05:30अच्छा! तो आप इस लिहाज से कह रहे हैं।अच्छा! तो आप इस लिहाज से कह रहे हैं।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-81372310274537127452008-02-02T16:56:00.000+05:302008-02-02T16:56:00.000+05:30अपने यहां ज्यादातर हंसी-मजाक परपीड़क ही है। किसी क...अपने यहां ज्यादातर हंसी-मजाक परपीड़क ही है। किसी की जाति, किसी के रंग, किसी के प्रांत, किसी की बीमारी का मजाक उड़ाने के अलावा हंसने का कोई और जरिया भी हो सकता है, शायद हम यह भूल ही गए हैं। लोगों के दायरे इतने अलग हुआ करते हैं कि जिन चीजों को ब्लैक ह्यूमर के दायरे में भी बमुश्किल रखा जा सकता है उन्हें हम निर्मल हृदय हास्य माने रहते हैं। भाई लोगों को अंत-अंत तक यही लगता रहा कि पत्नी के खाना बनाने में ऐसी क्या बात है जिसे सुनकर किसी को इस कदर मिर्ची लग पड़ी है...चंद्रभूषणhttps://www.blogger.com/profile/11191795645421335349noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-60282275239240975042008-02-02T14:48:00.000+05:302008-02-02T14:48:00.000+05:30आप मौज ही मौज मे { मन } की कह देते हैं----आभार ।आप मौज ही मौज मे { मन } की कह देते हैं----आभार ।पारुल "पुखराज"https://www.blogger.com/profile/05288809810207602336noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-30304510911976545572008-02-02T14:41:00.000+05:302008-02-02T14:41:00.000+05:30मौज मे मुद्दा कहाँ दिखता है आप कितनी भी कोशिश करे...मौज मे मुद्दा कहाँ दिखता है आप कितनी भी कोशिश करेAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-79980096885374190942008-02-02T14:05:00.000+05:302008-02-02T14:05:00.000+05:30@शिव बाबू,ज़्यादा रात्रि ही है, वही दिखाने की कोशि...@शिव बाबू,<BR/>ज़्यादा <B>रात्रि</B> ही है, वही दिखाने की कोशिश में फ़िल्म के पोस्टर की फोटू चिपकाई, चलिए, आपतक बात पहुंची, शुक्रिया..azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-45091170455526125082008-02-02T13:55:00.000+05:302008-02-02T13:55:00.000+05:30सच में 'अरन्येर दिनरात्रि' ही हो गया है. निकलना ज़...सच में 'अरन्येर दिनरात्रि' ही हो गया है. निकलना ज़रूरी है......:-)Shivhttps://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-13513443845735000732008-02-02T13:22:00.000+05:302008-02-02T13:22:00.000+05:30@प्यारे संजय,अभय के पोस्ट पर, और दूसरी जगहों, रच...@प्यारे संजय,<BR/>अभय के पोस्ट पर, और दूसरी जगहों, रचना और प्रत्यक्षा पर टुच्ची कहके गंदगी उछाली जा रही थी तो वह आपकी इस ब्लॉग बिरादरी का चिरकुट हास्य था या घटिया छेड़खानी? आपको तकलीफ न हुई, आपकी यही इतनी ही समझ है, जिनको हुई आप उनको अपने ठें-ठें में शामिल करवाना चाहते हैं? सॉरी, मुझे हंसी नहीं आ रही..azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-55509715631771346802008-02-02T12:58:00.000+05:302008-02-02T12:58:00.000+05:30मौज लेने लिलाने का सत्यानाश कर दिया. विनोद प्रियता...मौज लेने लिलाने का सत्यानाश कर दिया. विनोद प्रियता और हेंहेंठेंठें में फर्क होता है श्रीमान. आपने तो हास्य को और छेड़खानी को एक ही तराजू पर रख दिया.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2179815305421953170.post-84197080001501684672008-02-02T11:33:00.000+05:302008-02-02T11:33:00.000+05:30चाँप दिया , धर के !चाँप दिया , धर के !अफ़लातूनhttps://www.blogger.com/profile/08027328950261133052noreply@blogger.com