पहले देखकर निश्चिंत कर लें कि ब्रश और पेस्ट है घर में. जीभ घुमाते हुए मुंह में दांत का कर लें. और जीभ अपने मुंह में ही घुमायें. उसके बाद पूरे घर की एक टहल कर लें, सुनिश्चिंत हो लें कि घर आप ही का है, देह और मुंह अभी आपके कब्जे में है, अमित शाह और कंपनी ने उसका आलरेडी कोई वारा-न्यारा नहीं कर दिया है. नतीजे की खबर लगते ही तेजी से ब्रश करना शुरू कर दें, वर्ना ए.एस एंड कंपनी के वारा-न्यारा करने की काबिलियत की चिंताओं में आप ऐसा उलझेंगे कि हाथ, नाथ और माथ किंकर्तव्यविमूढ़ताओं की एक ऐसी मदहोशी में आपको पटक देगी कि ब्रश तो क्या, मुंह से बाप जपना भी आपके बस में न रहेगा. तो पहली बात, बस के रहते, ब्रश कर लें. और तेजी से, जल्दी-जल्दी कर लें.
अजीत शरद के इशारे पर है, या अमित के सहारों पर, या महाराष्ट्र का कौन सहारा है, इस सवाल की भी न सोचें. िकिसी भी सवाल की न सोचें. आज सुनील दत्त होते तो वह भी नहीं ही सोच रहे होते. रहे जब तक सोचकर उखड़ा कुछ? आह, चेहरे पर क्या भाव होता, या सोनिया के सामने बैठे चाय के अनपिये कप को निरखते बिमल राय की 'सुजाता' के किस संवाद की री-साइकलिंग, री-पैकेजिंग करते, और उसके बाद भी हवा के हवाई होने की सूरत न बनती यही तो मिलता सोचकर, फिर? मतलब यही कि सुनील दत्त की न सोचें. समय रहते सुनील दत्त निकल गए तो सोचकर ही निकले होंगे, और आपकी जानकारी को बता दें कि बिना ब्रश किये ही निकले थे. तो अभी भी आपके बस में है, ब्रश कर लीजिए. निकलना तो सुनील और दत्त को क्या, आप, हम, मनोरमा मौसी, ए एंड एस एंड कंपनी और उनके सब बिरादर और बापों को भी है. मुकेश और सुकेश को भी है. जीवन में जियो और पियो जितना खुराफात और उत्पात मचाना है, मचा लें, उसके बाद सड़क के आखिरी मकान के उस पार सिपाही हाथ में पुरची लिए खड़ा मिलता ही है कि गुरु, चलिए, अब टाईम हुआ.
हो गया ब्रश? अभी शुरु भी नहीं हुआ? घंटा इन्हीं लक्षणों पर ब्रश करेंगे? कर पायेंगे कभी? क्या फटीचर जनाना का हस्बैंड हैं, यार? या हस्बैंड की जनाना? जो भी हैं घंटा करो ब्रश और खतम करो, और जल्दी करो!
'हवा रेत और सितारे' एक पतली किताब है, मेज़ पर सामने मेहराई, मुरझाई गिरी पड़ी है. जो लिखे रहे, आंतुआं द सां-एक्सुपेरी, ज्यादे वक़्त वह भी बिना ब्रश के ही रहे, ज्यादे वक्त हवा में रहे, ज्यादा फुरसत रही ही नहीं कभी. हिन्दी में हवा रेत और सितारे देख सकें, इसकी भी न रही. हम भी मेज़ पर जो देख रहे हैं, अपने ख़यालों की हिन्दी में ही देख रहे हैं, असल में जो पड़ी मुरझा रही है वह अंग्रेजी में है. फातिमा भुट्टो ने ख़ुद, जीवन और पाकिस्तान की बलिहारियों पर पांच किताबें लिखी हैं, आखिरी जो है उसमें भी सितारे हैं, अफ़सोस कि वह उर्दू-हिन्दी रहित अंग्रेजी में ही हैं. अमरीकी यूनिवर्सिटियों में एक पुरानी हवा है, कि किसी थीम की छतरी के नीचे, बतौर एक सीरीज़, अलग-अलग लोगों से अलग-अलग किताबें लिखवाओ. जैसे यह फातिमा वाली किताब है, कोलम्बिया यूनिवर्सिटी की एक सीरीज़ है, कोलम्बिया ग्लोबल रिपोर्ट्स के तहत लिखवाई गई है. अपनी अमित एंड कंपनी होती तो कहती अबे अच्छा फालतू मज़ाक बना रखा है, ये सारा पैसा इस और उस पढ़ाई पर खराब हो रहा है, जबकि छनाई पर हो सकता रहा? ये पाकिस्तानी तमाशा, शिफ्ट करो सारा रिसोर्सेस अडानी की कंपनी की तरफ़, मज़ाक बना रखा है यूनिवर्सिटी फंड का, अबे, कौन दांत ब्रश कर रहा है मेरी पीठ पीछे?
मतलब अभी तक नहीं किया? ससुर (या सास?) तुमरे बस का नहीं है ब्रश करना, छोड़ो, रहने दो.
No comments:
Post a Comment