बुचियाओं का जीवन रहते-रहते रुसाइन हुआ जाता है। हाथ फेंककर एक खड़ा होने की कोशिश में ढिमिलियाई दूसरी पर गिरी चली आती, मुंह बाये रोने लगती है। उसे शिकायत है कोई उसे जलभरे कठवत में सोने क्यों नहीं देता। दूसरी हंसती आंख मींचती है कि इस घर में कोई उसे रोने नहीं देता। बुचियाओं की मम्मी हैरत करती है ये बच्चियां डाकदर कहता है उसी की हैं, मगर गोद में बच्चियों को झपकाते उसे यकीन नहीं होता। खदबद खयाल आते हैं हो न हो इनको डेनमार्क या स्वीडन कहीं से लाकर उसकी गोद में लिटाया गया है। माने एक बात कह रहे हैं। माने एक दूसरी बात भी कह रहे हैं। अभी नहीं भी कह रहे हैं तो थोड़ी देर में कहने लगेंगे ही..
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