Tuesday, October 25, 2016

काम करनेवाली लड़की का ब्‍लडी ब्‍लंडरिंग जीवन

काम करनेवाली लड़की के दो बच्चे हैं और हंसता-खेलता एक असंभव-सा जीवन है. काम करनेवाली लड़की अब लड़की नहीं रही, लेकिन देखनेवाले बीच-बीच में कोंचकर दिखवा, लजवा ही देते, कि अरे, तेरा चेहरा तेरह साल की लड़की से बहुत जुदा नहीं लगता, सुनकर काम करनेवाली लड़की हाथ की कमज़ोर हड़डि‍यों के संवलाएपन को परखती हंस लेती और काम करने लगती. करने को इतने काम रहते कि सोने का काम हमेशा छूटा रहता. पराये घर में नींद भी पराई लगती, बच्ची की देह पर धरा हाथ भी पराए घर का पराया हाथ लगता है. मगर यह हाल की बात है. उससे पहले के हाल की बात थी कि काम करनेवाली लड़की की काम भर की अपनी एक खोली थी, दीवार पर टंगा टीवी और माले पर रसोई थी, पसीने और खून से सहेजे दांतदाबे पैसों से खरीदी उसकी अपनी खोली, मगर पति चुप्‍पा हरामी उधारखोर निकला, उसकी कमरतोड़ उधारियों में एक दिन ऐसा सूरज चढ़ा कि अपना घर छिन गया, गई खोली, चढ़ गई बोली, आएगी फिर कभी हाथ, जब हाथ में हाथभर पैसा होगा, अभी अपनी नहीं. मुंह पर हाथ धरे कहने भर को घर नाम की एक जगह है, बड़की लड़ाकी पति के काकी की है, चुनांचे उसे घर कहते डर लगता है. खुलकर खाना खाने और गोड़ फैलाने में डर लगता है, छोटी बच्ची को छाती का दूध पिलाने और जरा से कमरे में घरघराते पंखे के नीचे गिरे सात देहों के बीच ठसमठस जवान देवर से देह बचाने में डर से ज्‍यादा हुशियार बुद्धि लगती है.

खोली खोने के बाद नामुराद पति से दूरी बढ़ाने और साथ के दोनों बच्चों को बचाने का एक तरीका यह भी था कि काम करनेवाली लड़की अपनी मां के आसरे जाती, मां ने कहा भी चली आ, मगर नौ साल की उम्र में होशियारी और कामभर की दुनियादारी सीख गए बेटे नेे विरोध में हाथ खड़े कर दिए कि वह चटोरे पापा की चटपट कटोरी से दूर नहीं जाएगा, गरीब गंदी नानी को किसी सूरत, सॉरी, अपना नहीं पाएगा. अपने ही पेट का जना बेटा था, तिस पर नौ साल की पिद्दी उम्र, फिर भी काम करनेवाली लड़की बेटे से सन्‍न हुई, उसे परे धकेल, कपड़ों की चार पोटली सजाती, नाक का बहता पानी बचाती, आठ बुलके चुआती, गोद में नन्‍हंकी टांगे, काम करनेवाली लड़की मां के घर थका मन थकी देह लिए पहुंची और पहुंचकर ढेर हुई. मां ने कहा पसरने से पहले, बेटा, फ़र्श पर ज़रा झाड़ू तो फेर दे, चढ़ा दे चूल्हे पर दाल और सिलिंडर भी अब खत्म होने को आया, मुझे बता साथ कुछ पैसे-टैसे लेकर तो आई है? मैं तुझसे झिकझिक नहीं करना चाहती लेकिन, बेटा, सबसे अलग-थलग अकेली मैं और हर चीज की यहां इतनी महंगाई है, तू भी जानती है तकिये के खोल में रोकड़ा छिपाकर तेरा बाप नहीं मरा था.

गुर्दे का बीमार बाप कैसे मरा था बेटी जानती थी, उसमें मां की लापरवाही का कितना किया-धरा था सो भी, पर ज़रूरत की घड़ी में मुंह मुंदे रही. मां पर चार पैसे खर्च करने से काम करनेवाली लड़की को गुरेज नहीं था लेकिन मां की दारूबाजी और रात-बिरात चिल्लाकर नन्‍हंकी पर चढ़ी आना, मुर्दा बाप के करम और मुर्दा होती बेटी की किस्‍मत कोसना, शोर में समूचे मोहल्‍ले को सिर पर उठाना, खड़ी-खड़ी पेशाब करते कमरे को गंद में नहलाना मां के ऐसे खुराफाती करामात थे जिसकी चोट में काम करनेवाली लड़की शर्म और गुस्‍से में गड़ी-खड़ी-पड़ी गिनती के चार दिन में ही ढेर हुई. नहीं चाहती थी फिर भी नामुराद पति के रस्ते और काकी के पते शर्मों नहायी फेर हुई. काकी के यहां दो कमरों में बारह लोग थे और बत्तीस किस्से, जबकि काम करनेवाली लड़की के हाथ साढ़े चार घर और माथे में चौबीस चिंताएं थी, बेटे का स्कूल, ट्यूशन और नष्ट होने की नित नई कहानियां थीं, छोटी बच्ची का हगना-मूतना दूध पानी और नन्‍हीं जान का इतना बड़ा दिन निकलेगा कैसे चैन से की हारी चिंताएं थीं, पति का बंद फोन और कभी भी भागकर कहीं भी गायब हो जाने की शैतानियां, और देनदारों का कहीं से भी सामने आकर धमक आने, और बिना लाग-लपेट धाराप्रवाह धमकियां सुनाने की हैरानियां थीं.

काम करनेवाली लड़की हाड तोड़ती काम करने का गुर जानती थी मगर कितना भी करो उससे काम बनता नहीं था. काम करनेवाली लड़की कभी अधरात घबराई बिछौने में उठकर बैठ जाती और उनींदे हिसाब लगाती फिरती अभी कितने साल और करेगी काम कि अपनी खोली पाएगी वापस, चैन से बेटी का दूध पीना निरख सकेगी. कुएं में छलांग मारकर सब खत्‍म कर ले या किसी सेठ की रखैतिन हो जाए, क्या करे कौन जतन भिड़ाए कि हाथ चार-पाँच-छै लाख आएं. कितने बरस हुए इतने जतन से नौरात का  उपवास करती रही, नंगे पैर नौ दिन सड़क-घिसाई करती फिरी, पर भगवान का दिल कहां पसीजा. इस बीच यही हुआ है कि बेटे ने चोरी करना सीख लिया और इत्‍ती ज़रा-सी बच्‍ची ने हंसना, अच्‍छे दिनों का हमेशा चुप रहनेवाला पति अब कभी हाथ चढ़ता है तो खुलकर गालियां चीखता कि क्या चाहती है हरामखोर, सबके आगे जाकर गांड़़ मराऊं? अपनी बोटी कराऊं, सबके साथ तू भी मेरा बंटाधार चाहती है, बोल?

काम करनेवाली लड़की कुछ नहीं कहती, काम करनेवाली लड़की को पति ही नहीं, दुनिया का कोई हिसाब-किताब समझ नहीं आता. काम करनेवाली लड़की का इन दिनों बहुत दिमाग नहीं चलता, कभी सुबह-सवेरे डरती है कि लो ब्लड प्रेशर में बीच सड़क गिर गई तो कोई उसे उठाकर डॉक्टर के पास ले जाएगा भी या नहीं. काम के रास्ते काम करनेवाली लड़की को दिखते हैं भीमकाय खरीदारी के पोस्टर. काम करनेवाली लड़की को भी दिया है किसी ने अमेज़न पर दिवाली के बंपर सेल का डोज़. काम की छुट्टी के दरमियान काम करनेवाली लड़की एक दूसरे कामवाली से सुनती है दिवाली की शॉपिंग में क्‍या तोड़ दें और क्‍या जोड़ लें की रोमांचकारी बातें, फिर दीवार का सहारा लेकर कहती है, बहन, एक गिलास पानी मिलेगा, हूँ बहुत देर से प्यासी.

2 comments:

  1. हमेशा की तरह, अद्भुत अभिव्यक्ति

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  2. आ रहा है, आ रहा है। सबकुछ जैसे आया है, वैसे ही आने की तरह आ रहा है।

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