Tuesday, October 25, 2016

काम करनेवाली लड़की का ब्‍लडी ब्‍लंडरिंग जीवन: दो

काम करनेवाली लड़की के माथे बचपन में साइकिल पर बैठने के मोह में हुए झगड़े से लगी चोट का एक निशान है, इससे अलग सिर पर ज़रा से बाल हैं. इतने नहीं कि वह उनका जुड़ा बांध सके. अलबत्‍ता बेमतलब इधर-उधर गिरती पतली चोटी को वो 'जुड़ी' में बांधकर, चुन्‍नी से कमर कस कर चटपट काम के लिए तैयार हो जाती है. काम के घरों में कोई अजाना बाहरी चेहरा चला आए तो काम करनेवाली लड़की के मुंह पर ख़ामोशी की पट्टी चढ़ जाती है. ऐसे बाहरी के आगे फिर सीधे गिलास लेकर दो घूंट पानी पीना भी उसके लिए ऐसा काम हो जाता है जिसे वह ठीक से कर नहीं पाती. जबकि भरोसे के चेहरों के आगे वह बेधड़क, बालकनी में गंदा कपड़ा फटकते, या भीतर के कमरे में पोंछे की भरी बाल्‍टी लिए घूमती, दो शब्‍दों का बारहा प्रयोग करती है: 'तफलीफ' और 'सुखून'. तकलीफ जो हर समय उसके पीठ पीछे खड़ा रहता है, और सुकून वो अप्राप्‍य प्रेमी है जिससे काम करनेवाली लड़की सीधे जाकर बात करने का कभी हिम्‍मत नहीं जुटा पाती.

सिर्फ सिर की पतली चोटी झमेला हो सो नहीं, हाथ और पैरों की छोटी, टेढ़ी-मेढ़ी उंगलियां भी हैं. ऊपर से नाखून चबाने की बचपन की गंदी आदत. फिर भी काम करनेवाली लड़की काम के अंतराली क्षण किसी 'दीदी' से जिज्ञासा करने की हिम्‍मत कर ही लेती है, उसे बताया जाता है तुझमें कैल्शियम की कमी है, और आइरन, फल-टल खाया कर, लड़की!

नन्‍हंकी के डायपर खरीद-खरीदकर हलकान है, फल किन पैसों से खरीदेगी? और खरीद ली भी तो बारह लोगों से भरे काकी के घर में अपने खाने के लिए उसे कहां छिपाकर रखेगी? काम करनेवाली लड़की भी जानती है कि काकी की चोर, परायाखोर आंखों से उसका कुछ भी छिपा लेना संभव नहीं. कहीं से भेंट पाया एक रूमाल तक वह काकी से बचाकर रख नहीं पाई, बेटे के लिए कहींं से बचाकर लाई आइसक्रीम भी, इस कहानी को उसने इतने मर्तबे जिया है कि काम करनेवाली लड़की काकी के घर में अब अपना कुछ छिपाकर रखना नहीं चाहती.

घरघराते पंखे के नीचे बहुत बार अंधेरे में बेटी को थपथपाती चार अच्‍छी बातों का सपना बुनते हुए भी काम करनेवाली लड़की को यही लगता कि वह जो भी उल्‍टा-सीधा सोच रही है, काकी को सबका सुराग है. सुबह नाश्‍ते के लिए झोले में जो उसने एक बासी रोटला चुराकर रखा है, उसका भी. कभी काकी का जी पसीजता है तो काम करनेवाली लड़की से कहती है कब तक नन्‍हंकी को छाती पर टांगे रखेगी, चार घड़ी आराम कर ले, ला, लड़की को मुझे दे, ला! नन्‍हंकी को काकी को सौंपते हुए हल्‍का होकर भी काम करनेवाली लड़की घबरायी भारी होती रहती. नन्‍हंकी को दूर करते ही उसके मन में एक बड़ा गड्ढा उभर आता और उसे लगता सब सुखुनों से दूर वह दुनिया में कितनी अकेली है. ज़रा दूर बेटे को पास लिए पति की भारी नाक बजती होती और देवर की जवान देह बेचैनी में डोलती रह-रहकर उसके पैरों से छू जाती. काम करनेवाली लड़की का मन तब तक अस्थिर बना रहता जब तक थकान की बेहोशी में फिर उसकी आंख नहीं लग जाती. सपने में उसे अपने झोले में छिपाया बासी रोटला दीखता जिसे वह चैन से कुतरती दिन भर के काम के लिए खुद को तैयार कर लेती.

1 comment:

  1. मन को व्यथित कर गया आपका लेख |

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