उम्र के साथ धीमे-धीमे आपका चेहरा ऐसा होने लगे कि उसके भाव अपठनशील होते चलें, यह इनिशियल बिगनिंग है। दूसरे, अंतरंगता के दायरों पर आप गांठ लगाते चलें। लहजा तंग और तंजभरा रखें। रहते-रहते गुस्से की नींद में लौट जायें। जागें तब भी राग गुस्से वाला ही बना रहे। ऐसी किताबी संगतों में रहें जिससे दोस्त तीन क्या तीस किलोमीटर भी नज़दीक पहुंच नहीं सकें। और खुदा न खास्ता पहुंच ही जायें तो इस हंफहंफी और थकान के चूरम-चूरे में हाें कि आंखों में धुआं और दिलों में सिसकारियां लोटती हों। तीन मिनट की चुप्पी के बाद आप दोस्त से पानी के लिए नहीं, निर्बुद्धिपने के दोहों और कुंजियों का पूछने लगिये, साथ ही इसका हिसाब लेने लगिये कि वह तीस साल से कौन-सा कद्दू छील रहा है। और अगर उसे यही कद्दू ही छीलना था तो वह आपके साथ क्या करता रहा है। जबकि दुनिया जानती है कि आपने कद्दू छीलने से अलग जीवन में कभी कुछ किया नहीं। क़ायदे से कद्दू भी नहीं छीला। कमर में गमछा डालकर नहाने निकले और खिड़कियों का रेत लांघकर लापता हो लिए। दोस्त भी जानते हैं आप किसी नेटवर्क में नहीं हो और जेब पैसों से खाली हो तो दोस्तियां-टोस्तियां सब धरी रह जाती हैं। आह में डूबा, अधमरा हो जाता है। आदमी कहीं पहुंचता है न ऐसी दोस्तियां। फिर भी दोस्त हैं कि सिसकारी भरने का अभिनय करते हैं। बीच-बीच में मनोहर कहानियों के पन्ने उलटते हुए फुरफुराते हैं कि पता नहीं, यार, चालीस साल कहां निकल गए? ऐसा कोई जवाब सामने खुले तो आप ऊंची आवाज़ में गरियाना शुरु कर दो। दोस्त को पता मत चलने दो गालियां ठीक-ठीक किसे दी जा रही हैं। उसे शुबहा हो उसे दी जा रही हैं तो शुबहे को खत्म मत करो। दोस्त को पानी के लिए अब भी मत पूछो। चाय का भूले से जिक्र खोले तो ऊंचा सुनने का अभिनय करो। दूध और दुनिया की शिकायत शुरु कर दो। दोस्तियों की मां-बहन करने में बहुत समय नहीं लगेगा। तो चलिये, शुरु कर दीजिए। आज पंद्रह है, तीस तक आपका रजिस्टर क्लियर और साफ़ हो जाएगा।
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