Saturday, October 23, 2021

पारिवारिक मौतें..

आजी को कुत्‍ता काट लिया। घर में दो लोग सरकारी फार्मेसी के मुलाजिम थे, मगर समय रहते लापरवाहियों के नाश्‍तों में लगे रहे, बुढ़िया कुत्‍ते के काटे से मर गई। बड़की आजी को बहुत पहले से पगलेल की पहचान मिली हुई थी। एक दिन देवर ने तय किया आज बूढ़रानी की पगलेटी सुधारे बिना मानेंगे नहीं, लउर से औरत को लखेदना, पीटना शुरु किये, लउर की एक चोट माथे में लगी। दर्शकदीर्घा से किसी ने आवाज़ दी डाकदर के हियां लेकर चलो, पगलेल शायद जादे पिटा गई है, होनहार देवर ने जवाब दिया, ठीके पिटाई है, इसीये से ठीक होगी। औरत ठीक नहीं हो सकी, लउर-चोटिल स्‍वर्ग सिधार गई। हो सकता है नर्के सिधारी हो। पक्‍की जानकारी नहीं। फुआ चचेरी थी, आंगनबाड़ी की सेवा में थी। मिशन कुपोषण हटाने का था। ताज़ा-ताज़ा महतारी हुई थीं, बच्‍चे को टांगे-टांगे नौकरी बजाने पहुंचतीं। बच्‍चा छै महीने का हो रहा था, कथरी पे लोटता उंगलियां चूसता रहता, कभी भें-भां रोना शुरु करता। फुआ अकबक बच्‍चे को देखतीं, फिर आंगनबाड़ी और कुपोषण की लड़ाई देखने लगतीं। बच्‍चा एक दिन खामखा माथा बहुत गरम कर लिया। डाक्‍टर आला घुमाता-छुआता चिखीस, बच्‍चा त कुपोसन का हस्‍पताल हो गया है, अब का करोगी? फुआ के करने को क्‍या था, आंगनबाड़ी की दरबारी में लगी रहीं, बच्‍चे का कुछ नहीं कर सकी। छौ महीने का बच्‍चा भगवान जी की तरफ़ उड़ गया।

नौकुमार नवका फटफटिया कीने थे, कलकत्‍ता से हज़ारीबाग़ एक सौ बीस की स्‍पीड की हवाई में लौट रहे थे। बगोदर पर छि‍नैतों ने हमला किया,  मगर नौकुमार पहुंचे हुए हवाईबाज़, छिनैत हंसिया-छुरा घुमाते रह गए, नौकुमार धराते-धराते फुरफुराये, हवा हो गए। घर पहुंचने-पहुंचने को थे, मटवारी तक पहुंचे होंगे कि गोड़ में सड़क किनारे कोई कोईन की नोकिल डांटी होगी, गोड़ को चुम्मा छुआती रह गई। नौकुमार को थोड़ी देर में अजबजाहट, कुछ थरथराहट महसूस हुई मगर हीरो आदमी थे, नज़रअंदाज़ करते हवाई के जोश में आगे निकल गए। हज़ारीबाग़ अभी आठ किलोमीटर की दूरी पर था, जब पैर के भारी गीलेपन पर नज़र गई, खून में सगरे गोड़ सराबोर हो रहा था, देखकर नौकुमार झुरझुरी के चपेटे में आए, फटफटिया पर हाथ की पकड़ ढीली हुई, सड़क के बाजू डिस्‍को के झाड़ थे, गाड़ी उसी में घुसी गई। नौकुमार छूटकर किधर गए इसका गिरते समय उन्‍हें पूरी तरह होश नहीं रहा। डिस्‍को के झाड़ से उनकी लाश तीसरे रोज़ बरामद हुई। नौकुमार से हमारे करीबी पारिवारिक संबंध नहीं थे। करीबी पारिवारिक संबंध हमारे अपने बाप से भी नहीं थे। मगर बापजी बापजी थे, उनकी ख़बरों पर आंख जाती रहती थी।

बापजी के हाथ में जादू था, जिसका भी इलाज करते, पांचवे दही का हंड़ि‍या लेकर लौटता कि आप त महाराज, एकदम्‍मै दुरुस्‍त कै दिये! जादू-जदाई में कै बरिस निकल गए। बापजी जादुई जीव थे, नशीले आदमी, बाद को महुए के शौक में संगीन होना शुरु हुए। उनकी इलाजों के लाभान्वित कभी महुए का चढ़ावा लिये लौटते। महुआ माथे चढ़ता गया, जान-पहचान के दूसरे डाकदरों ने बीच-बीच में होशियार करने की कोशिश की, मगर बापजी जादे होशियार थे, महुआ चांपे रहे, आगे जाकर पीलिये ने उनको चांप लिया। बापजी ने डेढ़ सौ बीमरिहाओं का पीलियामर्दन किया था, ख़ुद उनकी अपनी  पीलिया फिर ऐसा गहरा कोई क्‍या मायने रखती थी? कुछ डॉक्‍टरों ने तेल और मसाले से दूरी बरतने की सलाहियत दी थी, मगर बापजी बापजी थे, पीलिया को पीला होने देते रहे, चाट और छोला से मुंह नहीं मोड़े। दो दिन बीते होंगे, तीसरे दिन सड़क किनारे छोले की गुमटी पर ढिलमिलाये, बापजी की तीमारदारी को उस वक़्त आसपास कोई दूसरा बापजी तो था नहीं, मौत उसी दिन संझा को हुई।

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