Monday, November 8, 2021

सपनों की जगह कहां है

किसी किताब के भीतरी पन्‍नों में किसी भुलावे की तरह कभी थोड़ी देर को नज़र आ जाये, किसी बच्‍चे के भागने में, उसकी ख़ुश हंसी में, अदरवाइस अपनी अनुपस्थिति से सपना हमें अचम्भित करता रहता है। है कहां, किधर छिपा हुआ है की मदहोश बेचैनियों में हम हाथ-पैर फेंकते रहते हैं, सपना हमसे छूटा रहता है। एकवचन, बहुवचन, व्‍हॉटेवर।

सपनाहीन छूटे जीवन के पीछे भविष्‍यहीन वर्तमान को हम इधर और उधर सेट करते अनसेटल होते रहते हैं। वर्तमान की यह कैसी अजीबो-ग़रीब खुराक है थोड़ा कभी कुछ समझ आता है, मोस्‍टली अंधेरों की सनसनाती आवाज़ों में आंख मूंदे हम चलते रहते हैं। सपनाहीन, भविष्‍यहीन वर्तमान का उल्‍टा-सीधा दर्शन मन में गूंथते, सीमित समयों का, सीमित संसाधनों का अपनी ज़रुरतों, सहुलियतों का कोई टाईम-बाउंड तात्‍कालि‍क लक्ष्‍य का झुनझुना थमाकर थोड़े वक़्त के लिए सांस लेने भर का सुभीता पा लेते हैं। हालांकि लगातार घरघराते वर्तमान का पेंचदार कारख़ाना पीठ पीछे नई गुत्थियां बुन रहा है, मुंदी आंखों इसका अहसास बना रहता है। किसी किताब के डेढ़ मीठे पन्‍ने उससे ध्‍यान बंटवा दें तो वह ज़रा देर भर का ही ध्‍यान बंटवाना होता है। ख़याल, लैंडस्‍केप, समाज, समय सपनाहीन है, फ्यूचर विदाउट डायरेक्‍शन है का अहसास घरर-घरर दरकता, सरकता चलता है, लगातार। इस पर भी एक ठहरदार किताब लिखे जाने की ज़रुरत है। सोच रहा हूं कैसे लिखी जाये। पहली पंक्ति पर बहुत महीनों से अटका हुआ हूं। जैसे कि हमारा समय अटका हुआ है। ए वेरी लॉंग प्रेज़ेंट कन्टिन्‍युअस।

डेव एगर्स की नयी किताब आई है, आज के समय के बड़े झमेलों का कथानक है, ज़ाहिर है आप पढ़ेंगे नहीं, मैंने भी नहीं पढ़ी है।

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